Wednesday 12 August 2015

माँ

 कल रात जब मैं जा रहा था
अपने ऑफिस से घर वापस आ रहा था
इक औरत  फटी साड़ी  में
अपने बच्चे के साथ कबाड़ी में
उस माँ की नज़ारे कुछ ढूँढ रही थी
जो कबाड़ में कुछ ढूंढ रही थी
अचानक पाया उसने कुछ सड़ा फल
ऐसा लगा मानो निकला हो उसकी मुसीबत का हल
वो बच्चा कभी अपनी माँ की ओर ताक  रहा था
तो कभी मुझे आँचल के पीछे से झाँक रहा था
उस सेव को धो कर माँ ने दे दिया उसे खाने को
पर शायद वओ भूल गई कि कुछ और नहीं उसके पास मुँह लगाने को
उस बच्चे के चेहरे पर कुछ मुस्कान आई
ऐसा लगा मानो माँ के जान में जान आई
ये देखकर मेरा दिल व्यथित तो हुआ
पर ईश्वर का एक किस्सा मेरे सामने कथित तो हुआ
तभी मुझे ख्याल आया कि मेरी माँ ने भी कुछ ऐसा किया ही किया होगा
खुद भूखी रहकर भी मुझे निवाला दिया होगा
क्यों इंसान भूल गया उस माँ की ममता को
सब त्याग करने वाली जोगी रमता को
वो चाहती नहीं कुछ बस तेरे सिवा
पेड़, जड़ को भूल जाये तो क्या होगा
वो भविष्य में भी न सोचे की की उसका नामों निशां होगा
आज उसकी सेवा जिम्मेदारी है
क्योंकि उसकी ममता हर रिश्ते पे भारी है